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ऐसी भी क्या कशिश थी सिडनी शेल्डन की आत्मकथा में ! - उस दिन दिल्ली बंबई की फ्लाईट के बोर्डिग गेट के बाहर लॉबी में बैठा मैं सिडने शेल्डन की यह किताब पढ़ने में इस कद्र डूबा हुआ था ...और वैसे भी बोर्डिंग के ल...21 hours ago
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फौस अपनाने का कारण - यह 'भारतीय न्यायालयों में फौस का प्रयोग: इलाहाबाद उच्च न्यायालय से प्रेरित' श्रृंखला की सातवीं पोस्ट है। इसमें बताया गया है कि हमने फौस को क्यों अपनाया। द...1 day ago
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शब्दों की हिंसा - कुछ दिन पहले भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने टीवी के प्रोग्राम वाले श्री समय रैना और अन्य विदूषकों को आदेश दिया कि वे अपने कार्यक्रम में विकलांग और बीमार व्...2 days ago
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भ्रम है कि कुछ - तुम मुझे प्रेम कर रहे हो और ये एक इल्यूजन है। तो भी ये बहुत सुंदर है। इन दिनों मैं जब लिखता हूँ तब वाक्य से कोई एक शब्द छूट जाता है। उस छूटे हुए शब्द क...1 week ago
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मशीनी शैक्षिक दौर में शिक्षकों का महत्त्व - विकास के परिवर्तनशील चरणों में शिक्षा क्षेत्र में भी अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए. शिक्षा व्यवस्था परिवर्तनों के दौर में गुरुकुल पद्वति से निकल कर ई-लर...1 week ago
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2025–2035: Signs of the Great Transition and the Role of Consciousness - We are living through a rare moment in history — a period where the boundaries between past and future are dissolving rapidly, and the very fabric of hum...3 months ago
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काश मैं कार्टूनिस्ट होता - काश मैं कार्टूनिस्ट होता। बचपन में जो किरकिरा चेहरा किताब की कॉपी पर बनाता था, वो कभी मास्टर जी की डांट का पात्र बना, तो कभी दोस्तों की वाहवाही का। सोचा था...4 months ago
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जादू टूटता भी तो है। - There are monsters inside my heart. Every couple of days or months I need to go on a holiday to let them lose in the wilderness of solitude. They graze u...5 months ago
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ऑफिशिएटिंग अवार्ड - एक सीनियर सहकर्मी थे, पूरी नौकरी एक ही पद और एक ही शहर में काट दी। ऐसा नहीं कि योग्य नहीं थे लेकिन शहर नहीं छोड़ना था तो प्रोन्नति न लेने का यह उनका सोचा...6 months ago
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उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand - कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये नदियां...7 months ago
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विद्यासागर स्मृति सम्मान 2024 - सादगी और सुरुचिपूर्ण तरह से सम्पन्न हुए विद्यासागर स्मृति सम्मान के कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार गुरदीप खुराना ने कहा कि कथाकार ...11 months ago
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आशीष त्रिपाठी का काव्य संग्रह शान्ति पर्व - शान्ति पर्व पढ़ गया। किसी पुस्तक को पढ़ कर चुपचाप मन ही मन संवाद की आदत है। पहली बार यह बातचीत बाहर आने को मचली।... The post आशीष त्रिपाठी का काव्य संग्र...1 year ago
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नायक भेदा - नायिकाओं के अनेक भेद पढ़े होंगें आज जरा नायको के भेद भी पढ़िये और देखिये की आप किस श्रेणी मे आतें हैं । तो अलग अलग लोगों ने नायकों के अलग अलग भेद बताये...1 year ago
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How to Make Seeded Oat Bread - How to Make Seeded Oat Bread You know those gorgeous seed-encrusted loaves of bread you see in bakery windows? The kind you see and think, that must take...2 years ago
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सज्जन-मन - सब सहसा एकान्त लग रहा, ठहरा रुद्ध नितान्त लग रहा, बने हुये आकार ढह रहे, सिमटा सब कुछ शान्त लग रहा। मन का चिन्तन नहीं व्यग्रवत, शुष्क हुआ सब, अग्नि त...3 years ago
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'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद में - मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही होगी...शायद कभी...क्या पता। पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि व...3 years ago
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झाड़ू पोछा वाला रोबोट जो बिस्कुट हड़प गया - भारतीय परिवेश में झाड़ू पोछा वाला रोबोट की कार्यप्रणाली और उसके साथ हुआ अनुभव बताता लेख5 years ago
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झाड़ू पोछा वाला रोबोट जो बिस्कुट हड़प गया - भारतीय परिवेश में झाड़ू पोछा वाला रोबोट की कार्यप्रणाली और उसके साथ हुआ अनुभव बताता लेख5 years ago
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झाड़ू पोछा वाला रोबोट जो बिस्कुट हड़प गया - भारतीय परिवेश में झाड़ू पोछा वाला रोबोट की कार्यप्रणाली और उसके साथ हुआ अनुभव बताता लेख5 years ago
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आकाशवाणी के "विविधभारती : का प्रथम प्रसार गीत ~ :नाच रे मयूरा : गीतकार : पँडित नरेन्द्र शर्मा - ऑल इंडिया रेडियो "आकाशवाणी " का सर्व प्रथम गीत भारत सरकार की रेडियो प्रसारण सेवा के लिए बजाया गया उसे ' प्रसार गीत ' कहा गया ! डा. केसकर जी मँत्री थे सूच...5 years ago
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प्रधानमंत्री मोदी ने बटन दबाया लेकिन किसानो तक कुछ नहीं पहुंचा - 68 महिने में 168 योजनाओं का एलान । यानी हर 12 दिन में एक योजना का एलान । तो क्या 12 दिन के भीतर एक योजना पूरी हो सकती है या फिर हर योजना की उम्र पांच बरस ...5 years ago
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तीसरा दिन: जैसलमेर में मस्ती तो है - 13 दिसंबर 2019 कुछ साल पहले जब मैं साइकिल से जैसलमेर से तनोट और लोंगेवाला गया था, तो मुझे जैसलमेर में एक फेसबुक मित्र मिला। उसने कुछ ही मिनटों में मुझे प...5 years ago
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जियो सेट टॉप बॉक्स - महा बकवास - जियो फ़ाइबर सेवा धुंआधार है, और जब से इसे लगवाया है, लाइफ़ है झिंगालाला. आज तक कभी ब्रेकडाउन नहीं हुआ, बंद नहीं हुआ और स्पीड भी चकाचक. ऊपर से लंबे समय से...5 years ago
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कृष्ण अस्त्र - कुमुद कौमुदी गदा देवी, सहस्रार चक्र सु-दर्शन, वनमृग शृङ्ग शार्ङ्ग चाप, पाञ्चजन्य पञ्चजन आह्वान - मैं जीवन में एक बार केवल एक बार हुआ स्तब्ध ! कुरु सखी पा...6 years ago
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लवली गोस्वामी की तीन नई कविताएं - *(लवली गोस्वामी हिंदी की युवा कवयित्री हैं। बहुत कम और लंबे-लंबे अंतराल लेकर कविताएं लिखती हैं। इसीलिए उनका स्वर 'अर्धविरामों में विश्राम' से बना ...6 years ago
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एक जवान साथिन के लिए जो अब कहां जवान रही.. - ज़माना हुआ एक कबीता लिखे थे. एक जनाना थी, दुखनहायी थी, रहते-रहते मुंह ढांपकर रोने लगती थी, थोड़ा हम जानते-समझते थे, मगर बहुत सारा हमरे पार के परे था. सुझ...6 years ago
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स्क्रीन पर दर्दीली कविता की उपस्थिति : म्यूजिक टीचर - लेखिका और कवयित्री अनामिका अपने उपन्यास 'लालटेन बाज़ार' में लिखती हैं "संबंधों की इतिश्री की बात करते हो? प्रेम कोई नाटक नहीं जिसका परदा अचानक गिरा दिया ...6 years ago
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साध्वी प्रज्ञा पर काफ़ी सवालों के जवाब तो लिब्रल्स को भी देने हैं - साध्वी प्रज्ञा , असीमानंद और कर्नल पुरोहित : सबके केस में जितने जवाब हैं उससे कहीं ज़्यादा सवाल । मसलन : १. जब समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के चलते अमरीका पाक...6 years ago
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यह विदाई है या स्वागत...? - एक और नया साल...उफ़्फ़ ! इस कमबख़्त वक्त को भी जाने कैसी तो जल्दी मची रहती है | अभी-अभी तो यहीं था खड़ा ये दो हज़ार अठारह अपने पूरे विराट स्वरूप में...यहीं पह...6 years ago
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स्वतंत्रता और आवश्यकता - १ - हे मानवश्रेष्ठों, यहां पर ऐतिहासिक भौतिकवाद पर कुछ सामग्री एक शृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने यहां ‘मनुष्य और समाज’ के अंतर्गत मनु...6 years ago
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जख्म.... - वो जो अक्सर फजर से उगा करते है सुना है दिल से बहुत धुआं करते है। जलता है इश्क या खुद ही जल जाते हैं कलमे में खूब चेहरे पढा करत...7 years ago
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एक सपने की हत्या - कुछ मैंने की, कुछ तूने की कुछ मिलकर हम दोनों ने की इक सपने की हमने हत्या की । समझौतों का ये जीवन जीया मिलकर गरल कुछ हमने पीया जो करना था वह हमने न किया । ...7 years ago
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शरद कोकास की लम्बी कविता 'देह' पर राजेश जोशी की चिठ्ठी - *पहल 104 में प्रकाशित शरद कोकास की लम्बी कविता 'देह' पर राजेश जोशी की चिठ्ठी * प्रिय शरद , बहुत दिन बाद तुम्हारी लम्बी कविता देह को पढ़ा है । हालांकि एक ...7 years ago
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सभ्य और कुलीन पुरुषों ने उसे ऊँचे दर्जे की वेश्या कहा, इंटेलिजेंट औरतों ने बिम्बों, मोटे दिमाग की आवारा! - वो लम्बी, इकहरे बदन की बेहद खूबसूरत शोख लड़की, अमीर परिवार में पैदा हुई थी. उसने दरवाज़े की आड़ में पिता का हाथ माँ के गाल पर पड़ता सुना और देखा था. जब वह छ...8 years ago
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इश्क़ का बीज - लो मैंने बो दिया है इश्क़ का बीज कल जब इसमें फूल लगेंगे वो किसी जाति मज़हब के नहीं होंगे वो होंगे तेरी मेरी मुहब्बत के पाक ख़ुशनुमा फूल तुम उन अक्षरों से मुहब्...8 years ago
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हिंदी ब्लागिंग के कलंक ! - कल से ही सोच रहा हूं कि कम से कम अंतर्रराष्ट्रीय हिंदी ब्लागिंग दिवस पर कुछ तो लिखा जाए, मित्र भी लगातार याद दिला रहे हैं, पूछ रहे हैं कहां गायब है, इन...8 years ago
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छोड़िए अंकल… लाईट लीजिए न! - क्या आप बता सकते हैं कि नीचे लिखे हुए शब्दों/वाक्यों का अर्थ क्या है? “बाधा मैं काम के इस भाग को बहुत ही चुनौतीपूर्ण पाया. यह कोई है जो मानसिक रूप से या शा...8 years ago
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व्यंग की जुगलबंदी - टेलीफोन - इस घोर कलियुग में टेलीफोन का नाम लेने पर कुछ लोग उसी प्रकार की एक्टिंग करते पाए जाते हैं जैसा कि किसी टाइट जीन्स धारिणी, जस्टिन बीबर बलिदानिनी, ‘ओह म...8 years ago
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जब से तुझे देखा ... - - वो सावन-भादों की फुहार हैं...उमराव जान की ताजा़ ग़ज़ल...ख़ूबसूरत की शोख़ी और हर उस फिल्म की जान जिसमें वे नज़र आईं। रेखा ने जैसे उन्हें अपने क़रीब से ...8 years ago
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रात भर - रात भर मेघ बरसते रहे रात भर धरती भीगती रही पेड़ों के पत्ते खामोश रहे, रात भर और चांदनी भी मुंह चुराती रही कुछ सुना तुमने.. क्या.. दिल मेरा धडकता रहा रात भर....9 years ago
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मेला - मैंने वो चक्रधरपुर में लगने वाले सालाना मेले से खरीदी थी. दो लीवर लगे हुए थे उसमें. बाएं वाले लीवर को दबाओ तो पीछे के दोनों पाँव झुक जाते थे, मानो बैठ कर ख...9 years ago
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बचा रहे थोड़ा मूरखपन - *कल रात सोने से पहले कुछ लिखा था वह आज यहाँ साझा है :* आज सुबह - सुबह मनुष्य के सभ्य होते जाने के बिगड़ैलपन की दैनिक कवायद के रूप 'बेड टी' पीते हुए उसे वि...9 years ago
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वक़्त इरेज़र है तो परमानेंट मार्कर भी । - लाख कोशिशों के बावजूद भी आगरा की वो सरकारी पुलिस कॉलोनी मेरे ज़ेहन से नहीं जाती । और उस कॉलोनी का क्वार्टर नंबर सी-75 मेरे बचपन रुपी डायरी के हर पन्ने पर द...9 years ago
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स्वतंत्रता दिवस पर बच्चों के कुछ और भाषण (हिन्दी और भोजपुरी में) - *दो साल से ज़्यादा बीत गए यहाँ कुछ लिखे। ऐसा नहीं है कि लिखा नहीं जा रहा था, फेसबुक पर तो लगातार कुछ न कुछ लिखते रहे, यहाँ नहीं लगा सके। ब्लॉग जगत से दूरी...10 years ago
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अस्ताभ-व्यस्ताभ - भरे एक सिरे से और बहुत दिन पहले से सिरफिरा नेपथ्य में वर्तमान शीर्षस्थ जो भी था उसका जैसा भी था संकुचित दिनमान अनुमानित संभावनाओं का मानक मारीच जाली सामा...10 years ago
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टिन्डिस (Tyndis) जिसे पोन्नानि कहते हैं - रोमन साम्राज्य के अभिलेखों में भारत के दक्षिणी तट के टिन्डिस (Tyndis) नामक बंदरगाह का उल्लेख मिलता है और आज के “पोन्नानि” को ही इतिहासकारों ने टिन्डिस होने...11 years ago
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अरसा बीता.. - लम्हा,लम्हा जोड़ इक दिन बना, दिन से दिन जुडा तो हफ्ता, और फिर कभी एक माह बना, माह जोड़,जोड़ साल बना.. समय ऐसेही बरसों बीता, तब जाके उसे जीवन नाम दिया.. जब...11 years ago
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भगत सिंह, नास्तिकता और साम्यवाद. - व्यक्तित्व मूल्यांकन करने के कौन से औजार होने चाहिए , आने वाला समय इतिहास को किस दृष्टी से देखता है , व्यक्ति विशेष की सक्रियतों के मूल्यांकन के लिए कौन...11 years ago
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मैने खुद को खोज लिया..तो हंगामा हो गया - *-आशीष देवराड़ी* क्वीन एक बेहतरीन फिल्म है जिसकी तस्दीक मल्टीप्लेक्सों की खाली पड़ी सीटे करती हैं। यह विडंबना ही है कि कहानी के मामलों में रिक्त फिल्में ...11 years ago
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और ज्यादा सपने - वेणुगोपाल - *जड़ें* हवा पत्तों की उपलब्धि है। खूबसूरती तो सारी जड़ों की है। सूचना फूलों के इतिहास में दिलचस्पी हो जिन्हें कृपया बगीचे से बाहर चले जाएँ - लाइब्रेरी...11 years ago
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तुम्हारे लिये!! - मैं लिखना चाहता हूँ... एक बेहद सरल कविता इतनी सरल जितना, सरल लिखना स-र-ल इतनी सरल कि मैं अपनी जीवन की कठिनाइयों के साथ भी, जब उस कविता की सानिध्य में ज...11 years ago
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नुसरत बाबा की एक बेजोड़ बंदिश - नुसरत बाबा जो करते हैं सो अनूठा ही होता है. ये कंपोज़िशन सुनिये तो लगता है जैसे सुरों का एक दहकता अंगार हमारे बीच मौजूद है. उस्तादजी ने क़व्वाली विधा में काम ...13 years ago
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भारतीय गणतन्त्र : राष्ट्रीय पर्व - भारतीय गणतन्त्र चिरायु हो इस राष्ट्रीय पर्व पर समस्त हार्दिक शुभकामनाएँ © डॉ. कविता वाचक्नवी / Dr. Kavita Vachaknavee [[ This is a content summary only. ...13 years ago
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सायंस और सोसायटी - सेन डियागो में प्लांटस एंड एनिमल जेनोम की सालाना मीटींग है, अच्छी किस्मत रही की मीटिंग के दिनों पूरी फुर्सत से मीटिंग अटेंड की, होटल में एक अच्छी बेबी-सि...13 years ago
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सियासत की अंधी सुरंगों में रोशनी के टूटते-बिखरते ख़्वाब : नासिरा शर्मा की कहानियाँ [3] - सियासत की अंधी सुरंगों में रोशनी के टूटते-बिखरते ख़्वाब सियासी मन-मस्तिष्क से बनायी गयी सुरंगें योजनाब्द्ध तो होती ही हैं, किसी-न-किसी उद्देश्य को भी रूपान्...14 years ago
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योगासन से बीमार होते हैं ? - मैं पिछले आठ - दस साल से योगासन करता आ रहा हूँ |जब मैंने १९५० से निःशुल्क योगासन सिखाने वाले एक प्रतिष्ठित प्रशिक्षण केंद्र में दाखिला लिया तो मुझसे मेरी ब...14 years ago
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दूर छिपे उन दिनों का सपना - (आज लगभग दस सालों बाद लिखी गई कवितानुमा कोई चीज़) अखबार के पहले पन्ने पर रोते-बिलखते लोग बम फटने से मरे लोगों के परिजन बसे रहते हैं दिन भर मन में कहीं अंधेरी ...14 years ago
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वो पगली नहीं है ! - वैसे तो मैं आस पास के लोगों की घरेलु बातों पर ज्यादा मगज़मारी नहीं करता पर इस खबर पर से मेरा ध्यान हट न सका. मेरी पत्नी को पड़ोस के बब्बल की मम्मी जी न...14 years ago
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भेड़ियों के देश में - इसे पढ़ते पढ़ते सोचकर देखिये, आप एक दिन पास के ही सुंदर से जंगल में भ्रमण का विचार बनाते हैं और निकल पड़ते हैं अकेले ही। खुबसूरत वादियों, झरनों, पेड़ों से ...14 years ago
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मैंने आपके पास इन्हें भेजा है.... इन लोगों का अपने घर पर दीवाली ( 5 Nov 2010) शुक्रवार को स्वागत करें. - सभी ब्लागर एवं पाठक , मैंने कई लोगों को आप लोगों के घर का पता आपसे बिना पूछे दे दिया है..... मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप इन लोगों का स्वागत अपने घर पर जरूर ...14 years ago
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यहाँ हर सिम्त रिश्ते हैं जो अब मुश्किल निभाना है - बहुत आसाँ है रो देना, बहुत मुश्किल हँसाना है कोई बिन बात हँस दे-लोग कहते हैं "दिवाना है" हमारी ख़ुशमिज़ाजी पे तुनक-अंदाज़ वो उनका- "तुम्हें क्यों हर किसी को हम...14 years ago
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‘तुम्हारे शहर में आए हैं हम, साहिर कहां हो तुम’ - - राजकुमार केसवानी इस दुनिया के दस्तूर इस क़दर उलझे हुए हैं कि मैं ख़ुद को सुलझाने में अक्सर नाकाम हो जाता हूं. पता नहीं क्या सही है और क्या ग़लत. ऐसे में...15 years ago
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ब्लॉगर पर नई सुविधा- लेबल क्लाउड (label cloud) - ब्लॉगर सेवा के दस साल पूरे होने के साथ ही चिट्ठाकारों को नई सौगातें मिलने का सिलसिला शुरू हो गया है। ब्लॉगर संचालित चिट्ठों पर लेबल क्लाउड की बहुप्रतीक्षित...16 years ago
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Sunday, January 2, 2011
हिन्दी चिट्ठाजगत
यह हिन्दी चिट्ठाजगत के चुनिन्दा बेहतरीन चिट्ठो के संकलन का एक प्रयास मात्र है ! चिट्ठे वही लिए गए है जो इस संकलक का व्यवस्थापक पढ़ता है!
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