लोकप्रियता की धमक
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जैसे सोशल मीडिया नए जमाने की चौपाल है वैसे ही फिल्मी गीत नए जमाने का लोक
संगीत है। पर यह तकनीक और ग्लैमर के प्लेटफार्म पर खड़ा है। मुंबई के
षणमुखानंद ऑड...
ठेले पर नेमप्लेट
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ठेले पर नेमप्लेट ________________________________________________ जब कुछ
सिपाही फल के ठेले पर फलवाले के नाम का बोर्ड चिपकाने की कवायद कर रहे थे,तो
दशहरी आ...
दुकानो पर मालिक और कर्मचारी का नाम - गैरकानूनी
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मुज़फ़्फ़रनगर प्रशासन ने आदेश दिया है कि कांवड़ यात्रा के दौरान, खाद्य
पदार्थों से जुड़ी दुकानों के मालिकों को अपना और अपने यहां काम करने वाले
कर्मचारियो...
जहाँ रहो खुश रहो, सुखी रहो
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आज की तारीख वैसे तो खुश होने की है मगर चाह कर भी खुश नहीं हो पाते हैं. ऐसा
नहीं कि खुश रहना नहीं आता या फिर ख़ुशी ने अपना रास्ता बदल लिया है. इस तारीख
को ...
स्वर्ग से निष्कासित
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शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।
सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ
साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सा...
आयुर्वेद और वैज्ञानिक शोध
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आयुर्वेद में सदियों के अनुभवों से निर्मित भारतीय मानव-चिकित्सा का ज्ञान और
समझ संचित है। इस ज्ञान में एक ओर से जड़ी-बूटियों से ले कर हर तरह के
प्राकृतिक प...
यह कागज की कतरनों का खेल है
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यूं तो अरविंद शर्मा की पहचान एक फोटोग्राफर की ही रही। साहित्यिक सांस्कृतिक
गतिविधियां ही नहीं, रैली, जूलूस, धरने प्रदर्शन के फोटो खींचना ही उसका शौक
भी र...
गुरु गोरखनाथ की बानी – मेरा गुरु तीन छंद गावै
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महान संत, योगी एवं नाथ संप्रदाय के संस्थापक गुरु गोरखनाथ की गोरखबानी में
गुरु की महिमा एवं गुरु-शिष्य के संबंधों पर विशेष उल्लेख है। गोरखबानी...
The post...
कुन्नूर : धुंध से उठती धुन
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आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज
सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
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आलेख स्त्री का मन के चितेरे थे अनूपलाल मंडल "समाज की वेदी पर ” उपन्यास के
बहाने उनके रचना-संसार की पड़ताल -गीताश्री साहित्य के इतिहास के कुछ
पन्नों ...
नायक भेदा
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नायिकाओं के अनेक भेद पढ़े होंगें आज जरा नायको के भेद भी पढ़िये और देखिये
की आप किस श्रेणी मे आतें हैं ।
तो अलग अलग लोगों ने नायकों के अलग अलग भेद बताये...
डॉल्बी विजन देखा क्या?
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इससे पहले, अपने पिछले आलेख में मैंने आपसे पूछा था – डॉल्बी एटमॉस सुना क्या?
यदि आपने नहीं सुना, तो जरूर सुनें.
अब इससे आगे की बात –
डॉल्बी विजन देखा क...
हम बेल पर लगी ककड़ियाँ
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एक उम्र ऐसी आती है कि हर महीने दो महीने में (पति के व्हट्स एप ग्रुप में )
समाचार आता है कि यह या वह चला गया. कोई सोए में तो कोई दो चार दिन की बीमारी
...
कभी "ओलार" कभी "दाबू"
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*कभी "ओलार" कभी "दाबू" #Pryagraj *
"ओलार" यह शब्द प्रयागराज में ही प्रचलन में अधिक है। "ओलार" मतलब होता
डिसबैलेंस हो जाना। जैसी आजकल पाकिस्तान की ...
How to Make Seeded Oat Bread
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How to Make Seeded Oat Bread You know those gorgeous seed-encrusted loaves
of bread you see in bakery windows? The kind you see and think, that must
take...
टुकड़े टुकड़े गैंग ट्विस्ट
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मई माह में एक फ्लैट किराए पर लेना था। संयोगवश एक फ्लैट के बारे में सूचना
मिली जो लोकेशन, लोकेलिटी व उपलब्ध फर्नीचर आदि के स्तर पर उचित लगा। मुम्बई
का सि...
पाक मकड़ी.... पैग और नापाक पानी!
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मैं पहला पेग उठाने ही वाला था कि कोई जंतु उपर से नीचे आया माने गिलास के
नज़दीक ही था... मुझे एकदम हडबडाहट हो गयी, कुछ और नहीं सुझा तो टेबल से फुट
उठा कर ...
सज्जन-मन
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सब सहसा एकान्त लग रहा,
ठहरा रुद्ध नितान्त लग रहा,
बने हुये आकार ढह रहे,
सिमटा सब कुछ शान्त लग रहा।
मन का चिन्तन नहीं व्यग्रवत,
शुष्क हुआ सब, अग्नि त...
अब फोटो खींचकर पैसे कमाइए...
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आप अच्छे फोटोग्राफर हो और जबरदस्त फोटो खींचते हो... आप उन फोटो का क्या करते
हो??... यदि आप प्रोफेशनल फोटोग्राफर हैं, तब तो आप फोटो से पैसे कमाने के
बहुत ...
प्राइस ऑफ़ मोदी इयर्स
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*रविन्द्र वायकर* राजनीति के पुराने सिद्ध खिलाड़ी हैं। 92 में महापालिका
कॉरपोरेटर से शुरुआत की, 2009 में विधायकी हासिल की, मंत्री बने, विधायकी अभी
तक साधे...
चुप गली और घुप खिडकी
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एक गली थी चुप-चुप सी
इक खिड़की थी घुप्पी-घुप्पी
इक रोज़ गली को रोक ज़रा
घुप खिड़की से आवाज़ उठी
चलती-चलती थम सी गयी
वो दूर तलक वो देर तलक
पग-पग घायल डग भर प...
कोई दीप
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कोई दीप जलाओ, बहुत अँधेरा है।
चलते रहे जिन वीथियों पर
भटकती पहुँचीं उन संगीतियों पर
न अर्थ जिनका, न कोई डेरा है।
सहेजते रहे ताड़पत्र गठरियाँ भर
कि रचें...
दो कदम आगे - तीन कदम पीछे
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“अरी कौन साला विस नहीं किया” एक कड़कती सी आवाज़ ने नींद से बोझिल हो चुकी
आँखों को झकझोर दिया ।
सवेरे के साढ़े तीन बज रहे थे और पिछले साढ़े चार घंटे से ज...
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* विज्ञान व्रत का नया ग़ज़ल संचयन प्रकाशित *
जुगनू ही दीवाने निकले
अंधियारा झुठलाने निकले
ऊंचे लोग सयाने निकले
महलों में तहख़ाने निकले
में तो सबकी ही जड़ में...
पतझर का आसमान, पतझर की ज़मीन
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*(पेंग्विन से छपी अपनी कहानियों की किताब, ‘तीन रोज़ इश्क़’ से चर्चित पूजा
उपाध्याय पिछले कुछ वर्षों से उपन्यास पर काम कर रही हैं. यह उनका पहला
उपन्यास ह...
देवताओं के वंशज
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समुद्र मंथन के बाद
बचे हुए देवताओं के
तथाकथित वंशज
मानवता को मथते हुए
हवस के हाथों
बटोर रहे हैं
सोना- चांदी, महल - सिंहासन
अधिकार और कानून
उंडेल रहे हैं
आ...
दुख प्रतियोगिता
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कुछ व्यक्ति स्वभाव से आहें भरने वाले होते हैं । वह दुःख ओढ़ने को गरिमायुक्त
बनाते हैं, सुख को छिछोरपने के मुहल्ले में पहुँचा देते हैं
साधारणतया उनके वाक्...
नए निवेशक के लिए शेयर बाजार में मरफ़ी के नियम
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नए निवेशक के लिए शेयर बाजार में मरफ़ी के नियम:- जब तक आप डीमेट/ट्रेडिंग खाता
नहीं खुलवाते आपको बढ़ते शेयरों के समाचार आपको बहुत लुभाते है जिस दिन आप
डीमेट खु...
स्वतंत्रता और आवश्यकता - २
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हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर ऐतिहासिक भौतिकवाद पर कुछ सामग्री एक शृंखला के रूप में प्रस्तुत की
जा रही है। पिछली बार हमने यहां ‘मनुष्य और समाज’ के अंतर्गत स्व...
मौसम...
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एक समन्दर लिखना
कुछ किनारे लिखना।।
मै अपने लिख दूँगी
तुम, तुम्हारे लिखना।।
लिखना कैसी है वो बूंदें
जो बारिश में बरसती है
और कैसा है वो पानी
जिनको आंखें तर...
बदमाश औरत
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कल से इक विवादास्पद लेखक की अपने किसी कमेंट में कही इक बात बार बार हथौड़े
सी चोट कर रही थी ...." कुछ बदमाश औरतों ने बात का बतंगड़ बना दिया ...."
बस वहीं इस क...
वो....जो ख़ुद अभी बच्ची है
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एक छोटी सी बच्ची। आठ माह का विकसित गर्भ लिए बैठी है। मां ने कहा तो फ्रॉक
बदलकर सूट पहन लिया। फूले हुए पेट को दुपट्टे से छिपाने की कोशिश करती है। पर
सूजा...
चटख ललछौंहे रंग के कुरते के बावजूद
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*आज बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर कुछ लिखत - पढ़त। एक कविता के रूप में। लीजिए यह
साझा है :*
*कवि का कुरता*
यह कविता पाठ के मध्यान्तर का
चाय अंतराल था
जिसे कवि...
अस्ताभ-व्यस्ताभ
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भरे एक सिरे से और बहुत दिन पहले से सिरफिरा नेपथ्य में वर्तमान
शीर्षस्थ जो भी था उसका जैसा भी था संकुचित दिनमान
अनुमानित संभावनाओं का मानक मारीच जाली सामान...
टिन्डिस (Tyndis) जिसे पोन्नानि कहते हैं
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रोमन साम्राज्य के अभिलेखों में भारत के दक्षिणी तट के टिन्डिस (Tyndis) नामक
बंदरगाह का उल्लेख मिलता है और आज के “पोन्नानि” को ही इतिहासकारों ने टिन्डिस
होने...
अरसा बीता..
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लम्हा,लम्हा जोड़ इक दिन बना,
दिन से दिन जुडा तो हफ्ता,
और फिर कभी एक माह बना,
माह जोड़,जोड़ साल बना..
समय ऐसेही बरसों बीता,
तब जाके उसे जीवन नाम दिया..
जब ...
भगत सिंह, नास्तिकता और साम्यवाद.
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व्यक्तित्व मूल्यांकन करने के कौन से औजार होने चाहिए , आने वाला समय इतिहास
को किस दृष्टी से देखता है , व्यक्ति विशेष की सक्रियतों के मूल्यांकन के लिए
कौन...
मैने खुद को खोज लिया..तो हंगामा हो गया
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*-आशीष देवराड़ी*
क्वीन एक बेहतरीन फिल्म है जिसकी तस्दीक मल्टीप्लेक्सों की खाली पड़ी सीटे
करती हैं। यह विडंबना ही है कि कहानी के मामलों में रिक्त फिल्में ज...
तुम्हारे लिये!!
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मैं लिखना चाहता हूँ...
एक बेहद सरल कविता
इतनी सरल
जितना, सरल लिखना
स-र-ल
इतनी सरल कि
मैं अपनी जीवन की कठिनाइयों
के साथ भी, जब उस कविता की सानिध्य में ज...
नुसरत बाबा की एक बेजोड़ बंदिश
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नुसरत बाबा जो करते हैं सो अनूठा ही होता है.
ये कंपोज़िशन सुनिये तो लगता है जैसे सुरों का
एक दहकता अंगार हमारे बीच मौजूद है.
उस्तादजी ने क़व्वाली विधा में काम ...
योगासन से बीमार होते हैं ?
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मैं पिछले आठ - दस साल से योगासन करता आ रहा हूँ |जब मैंने १९५० से निःशुल्क
योगासन सिखाने वाले एक प्रतिष्ठित प्रशिक्षण केंद्र में दाखिला लिया तो मुझसे
मेरी ब...
दूर छिपे उन दिनों का सपना
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(आज लगभग दस सालों बाद लिखी गई कवितानुमा कोई चीज़)
अखबार के पहले पन्ने पर रोते-बिलखते लोग
बम फटने से मरे लोगों के परिजन
बसे रहते हैं दिन भर मन में कहीं
अंधेरी ...
बच्चों का यौन शोषण - मेरा नजरिया.
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अभी कुछ दिनों पहले रचना जी के नारी ब्लॉग पर उनका लेख " एक कहानी ख़त्म हो
जाती है" पढ़ा जिसमे उन्होंने लड़कियों के यौन शोषण पर अपनी पीड़ा व्यक्त की
थी और फिर...
भेड़ियों के देश में
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इसे पढ़ते पढ़ते सोचकर देखिये, आप एक दिन पास के ही सुंदर से जंगल में भ्रमण
का विचार बनाते हैं और निकल पड़ते हैं अकेले ही। खुबसूरत वादियों, झरनों,
पेड़ों से ...
यहाँ हर सिम्त रिश्ते हैं जो अब मुश्किल निभाना है
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बहुत आसाँ है रो देना, बहुत मुश्किल हँसाना है
कोई बिन बात हँस दे-लोग कहते हैं "दिवाना है"
हमारी ख़ुशमिज़ाजी पे तुनक-अंदाज़ वो उनका-
"तुम्हें क्यों हर किसी को हम...
‘तुम्हारे शहर में आए हैं हम, साहिर कहां हो तुम’
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- राजकुमार केसवानी
इस दुनिया के दस्तूर इस क़दर उलझे हुए हैं कि मैं ख़ुद को सुलझाने में अक्सर
नाकाम हो जाता हूं. पता नहीं क्या सही है और क्या ग़लत. ऐसे में...