सफेद सुवर उधर क्यों
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। भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम का श्रेय ले रहे हैं। इस बीच ट्रंप के
बार-बार संघर्ष विराम के लिए पाकिस्तान की पैरवी करने की बड़ी वजह सामने आई
है। बता...
समाज के दुश्मन से लड़ने को तैयार रहें
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पहलगाम में आतंकियों की अप्रत्याशित रूप से धार्मिक पहचान कर हिन्दुओं की
हत्याएँ करने के बाद समूचे देश ने केन्द्र सरकार से कठोर कार्यवाही की अपेक्षा
की थी....
डालडा कुक बुक ....
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डालडा---यह नाम सुनते ही जैसे मेरे कान खड़े हो जाते हैं यह सुनने के लिए आतुर
के डालडे के बारे में क्या कहा जा रहा है ...मैंने हिंदी और पंजाबी के अपने
ब्ल...
काश मैं कार्टूनिस्ट होता
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काश मैं कार्टूनिस्ट होता। बचपन में जो किरकिरा चेहरा किताब की कॉपी पर बनाता
था, वो कभी मास्टर जी की डांट का पात्र बना, तो कभी दोस्तों की वाहवाही का।
सोचा था...
एक सच और
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चित्रकृति - सुमनिका, कागज पर चारकोल
मैंने कहानियां ज्यादा नहीं लिखीं हैं । जो लिखी हैं वे भी पचीस तीस साल पहले
। रोटियां कहानी हिमाचल की ग्रामीण पृष्ठभ...
जादू टूटता भी तो है।
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There are monsters inside my heart. Every couple of days or months I need
to go on a holiday to let them lose in the wilderness of solitude. They
graze u...
चश्मा टूटने का स्वप्न
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मैं अपनी डायरी में अर्थहीन और कथानक के हिसाब से छिन्न भिन्न सपनों के बारे
में लिखता रहा हूँ। उन सपनों के देखे जाने के कुछ समय पश्चात मुझे कोई उकसाता
रहा ...
ममता बहन - आपकी बहुत याद आएगी
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डॉ. ममता सिंह, इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त
हुईं थीं। यह चिट्ठी, उनको श्रद्धांजलि है।
डॉ. ममता सिंह (मेरे लिए ममता बहन) अब ...
इतिहास और मानव समाज के बदलते मूल्य
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इअन मौरिस (Ian Morris) इंग्लैंड में जन्में लेखक, इतिहासकार तथा पुरातत्व
विशेषज्ञ हैं जो आजकल अमरीका में स्टैनफोर्ड युनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। मेरा
यह आले...
ऑफिशिएटिंग अवार्ड
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एक सीनियर सहकर्मी थे, पूरी नौकरी एक ही पद और एक ही शहर में काट दी। ऐसा
नहीं कि योग्य नहीं थे लेकिन शहर नहीं छोड़ना था तो प्रोन्नति न लेने का यह
उनका सोचा...
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
विद्यासागर स्मृति सम्मान 2024
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सादगी और सुरुचिपूर्ण तरह से सम्पन्न हुए विद्यासागर स्मृति सम्मान के कार्यक्रम
की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार गुरदीप खुराना ने कहा कि कथाकार ...
आशीष त्रिपाठी का काव्य संग्रह शान्ति पर्व
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शान्ति पर्व पढ़ गया। किसी पुस्तक को पढ़ कर चुपचाप मन ही मन संवाद की आदत है।
पहली बार यह बातचीत बाहर आने को मचली।...
The post आशीष त्रिपाठी का काव्य संग्र...
नायक भेदा
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नायिकाओं के अनेक भेद पढ़े होंगें आज जरा नायको के भेद भी पढ़िये और देखिये
की आप किस श्रेणी मे आतें हैं ।
तो अलग अलग लोगों ने नायकों के अलग अलग भेद बताये...
How to Make Seeded Oat Bread
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How to Make Seeded Oat Bread You know those gorgeous seed-encrusted loaves
of bread you see in bakery windows? The kind you see and think, that must
take...
सज्जन-मन
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सब सहसा एकान्त लग रहा,
ठहरा रुद्ध नितान्त लग रहा,
बने हुये आकार ढह रहे,
सिमटा सब कुछ शान्त लग रहा।
मन का चिन्तन नहीं व्यग्रवत,
शुष्क हुआ सब, अग्नि त...
तीसरा दिन: जैसलमेर में मस्ती तो है
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13 दिसंबर 2019
कुछ साल पहले जब मैं साइकिल से जैसलमेर से तनोट और लोंगेवाला गया था, तो मुझे
जैसलमेर में एक फेसबुक मित्र मिला। उसने कुछ ही मिनटों में मुझे प...
जियो सेट टॉप बॉक्स - महा बकवास
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जियो फ़ाइबर सेवा धुंआधार है, और जब से इसे लगवाया है, लाइफ़ है झिंगालाला. आज
तक कभी ब्रेकडाउन नहीं हुआ, बंद नहीं हुआ और स्पीड भी चकाचक. ऊपर से लंबे समय
से...
कृष्ण अस्त्र
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कुमुद कौमुदी गदा देवी,
सहस्रार चक्र सु-दर्शन,
वनमृग शृङ्ग शार्ङ्ग चाप,
पाञ्चजन्य पञ्चजन आह्वान -
मैं जीवन में एक बार
केवल एक बार
हुआ स्तब्ध !
कुरु सखी पा...
लवली गोस्वामी की तीन नई कविताएं
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*(लवली गोस्वामी हिंदी की युवा कवयित्री हैं। बहुत कम और लंबे-लंबे अंतराल
लेकर कविताएं लिखती हैं। इसीलिए उनका स्वर 'अर्धविरामों में विश्राम' से बना
...
एक जवान साथिन के लिए जो अब कहां जवान रही..
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ज़माना हुआ एक कबीता लिखे थे. एक जनाना थी, दुखनहायी थी, रहते-रहते मुंह
ढांपकर रोने लगती थी, थोड़ा हम जानते-समझते थे, मगर बहुत सारा हमरे पार के परे
था. सुझ...
यह विदाई है या स्वागत...?
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एक और नया साल...उफ़्फ़ ! इस कमबख़्त वक्त को भी जाने कैसी तो जल्दी मची रहती है |
अभी-अभी तो यहीं था खड़ा ये दो हज़ार अठारह अपने पूरे विराट स्वरूप में...यहीं
पह...
स्वतंत्रता और आवश्यकता - १
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हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर ऐतिहासिक भौतिकवाद पर कुछ सामग्री एक शृंखला के रूप में प्रस्तुत की
जा रही है। पिछली बार हमने यहां ‘मनुष्य और समाज’ के अंतर्गत मनु...
एक सपने की हत्या
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कुछ मैंने की, कुछ तूने की
कुछ मिलकर हम दोनों ने की
इक सपने की हमने हत्या की ।
समझौतों का ये जीवन जीया
मिलकर गरल कुछ हमने पीया
जो करना था वह हमने न किया ।
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आलेख विषय- महिला लेखन की चुनौतियां और संभावना -गीताश्री “कोई औरत कलम उठाए
इतना दीठ जीव कहलाए उसकी गलती सुधर न पाए उसके तो लेखे तो बस ये है पहने-ओढे,
नाचे ग...
इश्क़ का बीज
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लो मैंने बो दिया है
इश्क़ का बीज
कल जब इसमें फूल लगेंगे
वो किसी जाति मज़हब के नहीं होंगे
वो होंगे तेरी मेरी मुहब्बत के पाक ख़ुशनुमा फूल
तुम उन अक्षरों से मुहब्...
हिंदी ब्लागिंग के कलंक !
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कल से ही सोच रहा हूं कि कम से कम अंतर्रराष्ट्रीय हिंदी ब्लागिंग दिवस पर कुछ
तो लिखा जाए, मित्र भी लगातार याद दिला रहे हैं, पूछ रहे हैं कहां गायब है,
इन...
छोड़िए अंकल… लाईट लीजिए न!
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क्या आप बता सकते हैं कि नीचे लिखे हुए शब्दों/वाक्यों का अर्थ क्या है? “बाधा
मैं काम के इस भाग को बहुत ही चुनौतीपूर्ण पाया. यह कोई है जो मानसिक रूप से
या शा...
व्यंग की जुगलबंदी - टेलीफोन
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इस घोर कलियुग में टेलीफोन का नाम लेने पर कुछ लोग उसी प्रकार की एक्टिंग करते
पाए जाते हैं जैसा कि किसी टाइट जीन्स धारिणी, जस्टिन बीबर बलिदानिनी, ‘ओह
म...
जब से तुझे देखा ...
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- वो सावन-भादों की फुहार हैं...उमराव जान की ताजा़ ग़ज़ल...ख़ूबसूरत की शोख़ी
और हर उस फिल्म की जान जिसमें वे नज़र आईं। रेखा ने जैसे उन्हें अपने क़रीब से
...
रात भर
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रात भर मेघ बरसते रहे
रात भर धरती भीगती रही
पेड़ों के पत्ते खामोश रहे, रात भर
और चांदनी भी मुंह चुराती रही
कुछ सुना तुमने..
क्या..
दिल मेरा धडकता रहा
रात भर....
मेला
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मैंने वो चक्रधरपुर में लगने वाले सालाना मेले से खरीदी थी. दो लीवर लगे हुए
थे उसमें. बाएं वाले लीवर को दबाओ तो पीछे के दोनों पाँव झुक जाते थे, मानो
बैठ कर ख...
बचा रहे थोड़ा मूरखपन
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*कल रात सोने से पहले कुछ लिखा था वह आज यहाँ साझा है :*
आज सुबह - सुबह मनुष्य के सभ्य होते जाने के बिगड़ैलपन की दैनिक कवायद के रूप
'बेड टी' पीते हुए उसे वि...
वक़्त इरेज़र है तो परमानेंट मार्कर भी ।
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लाख कोशिशों के बावजूद भी आगरा की वो सरकारी पुलिस कॉलोनी मेरे ज़ेहन से नहीं
जाती । और उस कॉलोनी का क्वार्टर नंबर सी-75 मेरे बचपन रुपी डायरी के हर पन्ने
पर द...
अस्ताभ-व्यस्ताभ
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भरे एक सिरे से और बहुत दिन पहले से सिरफिरा नेपथ्य में वर्तमान
शीर्षस्थ जो भी था उसका जैसा भी था संकुचित दिनमान
अनुमानित संभावनाओं का मानक मारीच जाली सामा...
टिन्डिस (Tyndis) जिसे पोन्नानि कहते हैं
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रोमन साम्राज्य के अभिलेखों में भारत के दक्षिणी तट के टिन्डिस (Tyndis) नामक
बंदरगाह का उल्लेख मिलता है और आज के “पोन्नानि” को ही इतिहासकारों ने टिन्डिस
होने...
अरसा बीता..
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लम्हा,लम्हा जोड़ इक दिन बना,
दिन से दिन जुडा तो हफ्ता,
और फिर कभी एक माह बना,
माह जोड़,जोड़ साल बना..
समय ऐसेही बरसों बीता,
तब जाके उसे जीवन नाम दिया..
जब...
भगत सिंह, नास्तिकता और साम्यवाद.
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व्यक्तित्व मूल्यांकन करने के कौन से औजार होने चाहिए , आने वाला समय इतिहास
को किस दृष्टी से देखता है , व्यक्ति विशेष की सक्रियतों के मूल्यांकन के लिए
कौन...
मैने खुद को खोज लिया..तो हंगामा हो गया
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*-आशीष देवराड़ी*
क्वीन एक बेहतरीन फिल्म है जिसकी तस्दीक मल्टीप्लेक्सों की खाली पड़ी सीटे
करती हैं। यह विडंबना ही है कि कहानी के मामलों में रिक्त फिल्में ...
और ज्यादा सपने - वेणुगोपाल
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*जड़ें*
हवा
पत्तों की
उपलब्धि है। खूबसूरती
तो सारी जड़ों की है।
सूचना
फूलों के इतिहास में
दिलचस्पी हो जिन्हें
कृपया बगीचे से
बाहर चले जाएँ -
लाइब्रेरी...
तुम्हारे लिये!!
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मैं लिखना चाहता हूँ...
एक बेहद सरल कविता
इतनी सरल
जितना, सरल लिखना
स-र-ल
इतनी सरल कि
मैं अपनी जीवन की कठिनाइयों
के साथ भी, जब उस कविता की सानिध्य में ज...
नुसरत बाबा की एक बेजोड़ बंदिश
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नुसरत बाबा जो करते हैं सो अनूठा ही होता है.
ये कंपोज़िशन सुनिये तो लगता है जैसे सुरों का
एक दहकता अंगार हमारे बीच मौजूद है.
उस्तादजी ने क़व्वाली विधा में काम ...
योगासन से बीमार होते हैं ?
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मैं पिछले आठ - दस साल से योगासन करता आ रहा हूँ |जब मैंने १९५० से निःशुल्क
योगासन सिखाने वाले एक प्रतिष्ठित प्रशिक्षण केंद्र में दाखिला लिया तो मुझसे
मेरी ब...
दूर छिपे उन दिनों का सपना
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(आज लगभग दस सालों बाद लिखी गई कवितानुमा कोई चीज़)
अखबार के पहले पन्ने पर रोते-बिलखते लोग
बम फटने से मरे लोगों के परिजन
बसे रहते हैं दिन भर मन में कहीं
अंधेरी ...
वो पगली नहीं है !
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वैसे तो मैं आस पास के लोगों की घरेलु बातों
पर ज्यादा मगज़मारी नहीं करता पर इस खबर पर से मेरा ध्यान हट न सका. मेरी
पत्नी को पड़ोस के बब्बल की मम्मी जी न...
भेड़ियों के देश में
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इसे पढ़ते पढ़ते सोचकर देखिये, आप एक दिन पास के ही सुंदर से जंगल में भ्रमण
का विचार बनाते हैं और निकल पड़ते हैं अकेले ही। खुबसूरत वादियों, झरनों,
पेड़ों से ...
यहाँ हर सिम्त रिश्ते हैं जो अब मुश्किल निभाना है
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बहुत आसाँ है रो देना, बहुत मुश्किल हँसाना है
कोई बिन बात हँस दे-लोग कहते हैं "दिवाना है"
हमारी ख़ुशमिज़ाजी पे तुनक-अंदाज़ वो उनका-
"तुम्हें क्यों हर किसी को हम...
‘तुम्हारे शहर में आए हैं हम, साहिर कहां हो तुम’
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- राजकुमार केसवानी
इस दुनिया के दस्तूर इस क़दर उलझे हुए हैं कि मैं ख़ुद को सुलझाने में अक्सर
नाकाम हो जाता हूं. पता नहीं क्या सही है और क्या ग़लत. ऐसे में...
ब्लॉगर पर नई सुविधा- लेबल क्लाउड (label cloud)
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ब्लॉगर सेवा के दस साल पूरे होने के साथ ही चिट्ठाकारों को नई सौगातें मिलने
का सिलसिला शुरू हो गया है। ब्लॉगर संचालित चिट्ठों पर लेबल क्लाउड की
बहुप्रतीक्षित...